Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार स्तम्भो में से एक थे। उनके साहित्यिक योगदान नें हिंदी को एक नई ऊचाई प्रदान की। उनकी कविताओं में प्रकृति, सौन्दर्य, मानवीय संवेदनाये और सामाजिक विचारों का अनूठा संगम हैं। पंत जी को “प्रकति के सुकुमार कवि” के रूप में भी जाना जाता हैं। क्या आप जानते हैं की सुमित्रानंदन पंत जी नें मात्र सात वर्ष की अल्पआयु में ही काव्य की रचनायें करना शुरू कर दिया था। आइये हम सुमित्रानंदन पंत जी के जीवन परिचय और साहित्यिक उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
पूरा नाम | सुमित्रानंदन पंत |
बचपन का नाम | गोसाई दत्त |
जन्म तिथि | 20 मई 1900 |
जन्म स्थान | ग्राम – कोसानी , जिला – अल्मोड़ा , (उत्तराखण्ड) |
पिता | श्री गंगादत्त |
माता | श्री मति सरस्वती देवी ( जन्म के 6 घंटे बाद मृत्यु ) |
शिक्षा | हिन्दी साहित्य |
विषय | संस्कृत |
पेशा | लेखक कवि |
पुरस्कार | ज्ञानपीठ , पद्म भूषण , साहित्य अकादमी , सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार |
रचनायें | काव्य , नाटक , उपन्यास , कहानी संग्रह |
भाषा | हिन्दी , संस्कृत आदि |
शैली | तुकांत , अतुकांत , मुक्तक, गीति शैली |
धर्म | हिन्दू |
जाति | ब्राह्मण |
नागरिकता | भारतीय |
मृत्यु तिथि | 28 दिसंबर 1977 |
मृत्यु स्थान | इलहाबाद (प्रयागराज) उत्तर प्रदेश |
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में जाने वाले सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 20 मई 1900 में उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में हुआ था। उनके पिता जी का नाम पंडित गंंगादत्त पंत तथा माता जी का नाम सरस्वती देवी था। पंत जी अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे।
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichayअपने साथ भाई बहनों में सबसे छोटे सुमित्रानन्दन थे। उनके जन्म के कुछ ही समय बाद उनके माता का देहांत हो गया उनका लालन-पोषण उनकी दादी ने किया। बचपन में उनका नाम ‘गोसाई दत्त’ था। लेकिन हाई स्कूल के समय उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। वह अपने सभी भाई बहनों में सबसे छोटे थे।
सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव से ही शुरू की फिर वह वाराणसी आ गये। और जय नारायण हाई स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। इसके पश्चात सुमित्रानंदन पंत ने वर्ष 1918 में इलाहाबाद वर्तमान में प्रयागराज चले गए। और वहां उन्होंने म्योर कॉलेज में 12वीं कक्षा में दाखिला लिया। इस कॉलेज में उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की। बता दे कि यह वह समय था जब संपूर्ण भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन चल रहे थे।
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : वर्ष 1931 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में हजारों लोगों ने सरकारी स्कूलों, विद्यालयों, कार्यालयों और विदेशी वस्त्रो का बहिष्कार किया। इस आंदोलन में सुमित्रानंदन पंत जी ने भी अपना कॉलेज छोड़ दिया जिसके बाद वह हिंदी संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे। कॉलेज में उनका नाट्य और साहित्यिक सम्मेलनों में सहभाग था।
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : साल 1921 में उन्होंने इंटरमीडिएट (12वीं ) सफलतापूर्वक उतृीण की और उसी कॉलेज से B. A. का अध्ययन शुरू किया। लेकिन B.A. की पढ़ाई उन्हें बीच में ही छोड़नी पड़ी क्योंकि, उसी समय उनकी बड़ी बहन का देहांत हो गया।
सुमित्रानंदन पंत की साहित्यिक यात्रा
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : क्या आप जानते हैं कि सुमित्रानंदन पंत ने 7 वर्ष की अल्प आयु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में हमें प्रकृति का सौंदर्य चित्रण के साथ-साथ नई चेतना और ग्रामीण जीवन की विसंगतियों का माध्यमिक चित्रण देखने को मिलता है। उनका लेखन इतना सशक्त और प्रभावशाली था जिसकी वजह से वर्ष 1918 में महज 18 वर्ष की आयु में शिव उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली। बताते कि उनका रचनाकाल वर्ष 1916 से 1977 तक लगभग 60 वर्ष तक रहा। उनकी यात्रा के तीन प्रमुख चरण देखने को मिलते हैं जिनमें –
- पहला चरण: छायावाद – इसमें प्रकृति, सौंदर्य,कल्पना और भावनाओं पर आधारित काव्य।
- दूसरा चरण: प्रतिवाद – इसमें सामाजिक मुद्दे और समाज परिवर्तन के मुद्दे पर आधारित काव्य।
- तीसरा चरण: अध्यात्मवाद – इसमें आध्यात्मिक जीवन और जीवन के अर्थ पर आधारित काव्य।
सुमित्रानंदन पंत की साहित्य रचनाएं
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : हम उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आप नीचे दिए गए अंक तालिका में देख सकते हैं।
काव्य – रचनाएं –
काव्य | प्रशासन वर्ष |
वीणा | वर्ष 1919 |
ग्रंथि | वर्ष 1920 |
पल्लव | वर्ष 1926 |
गुंजन | वर्ष 1932 |
युगान्त | वर्ष 1937 |
युगवाणी | वर्ष 1938 |
स्वर्णकिरण | वर्ष 1947 |
स्वर्णधूलि | वर्ष 1947 |
उत्तरा | वर्ष 1949 |
युगपथ | वर्ष 1949 |
चिदंबरा | वर्ष 1958 |
कला और बूढ़ा चाँद | वर्ष 1959 |
लोकायतन | वर्ष 1964 |
गीत हंस | वर्ष 1969 |
उपन्यास
उपन्यास | प्रकाशन वर्ष |
हार | वर्ष 1960 |
कहानी
कहानी संग्रह | प्रकाशन वर्ष |
पाँच कहानियाँ | वर्ष 1938 |
नाट्य-कृतियाँ
नाट्य-कृतियाँ | प्रकाशन वर्ष |
परी | वर्ष 1925 |
ज्योत्स्ना | वर्ष 1934 |
जिंदगी का चौराहा | वर्ष 1939 |
अस्पृश्या | वर्ष 1937 |
सृष्टा | वर्ष 1938 |
करमपुर की रानी | वर्ष 1949 |
चौराहा | वर्ष 1948 |
शकुंतला | वर्ष 1948 |
युग पुरुष | वर्ष 1948 |
छाया | वर्ष 1948 |
आत्मकथात्मक संस्मरण
आत्मकथात्मक संस्मरण | प्रकाशन वर्ष |
साठ वर्ष : एक रेखांकन | वर्ष 1963 |
पुरस्कार व सम्मान
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : पंत जी की साहित्य साधना के लिए उन्हें कुछ प्रमुख साहित्य पुरस्कार व सम्मान के बारे में नीचे दिए गए बिंदुओं बताया गया है।
- वर्ष 1960 में उनके काव्य संग्रह कला और ‘बूढ़ा चांद’ के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 1961 में भारत सरकार है उन्हें साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पंत जी को ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया
- वर्ष 1968 में ‘चिदंबरा’ काव्य संग्रह के लिए सुमित्रानंदन पंत जी को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
- सुमित्रानंदन पंत की ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ को सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
- भारत सरकार ने सुमित्रानंदन पंत के सम्मान में ‘डाक टिकट’ भी जारी किया।
छायावाद के एक युग का अंत
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में ही बीता। उनके साहित्यिक जीवन लगभग 60 वर्षों तक रहा जिसमें उन्होंने कई विशिष्ट काव्य रचनाओं की। बता दे की 28 दिसंबर 1977 को 77 वर्ष की आयु में इलाहाबाद (प्रयागराज) उत्तर प्रदेश में निधन हो गया और इसी के साथ छायावाद के एक युग का अंत हो गया। इसके बाद उनके पैतृक गांव कौसानी में उनके घर को सरकारी तौर पर अधिग्रहित कर सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक विथिका नामक संग्रहालय में बदल दिया गया। इस संग्रहालय में महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी की एक मूर्ति स्थापित है और यहां उनकी व्यक्तिगत चीज सस्ती पत्र विभिन्न संग्रहों की पांडुलिपियों को सुरक्षित रखा गया है।
छायावाद युग के प्रमुख कवि
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay : हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक इस युग को जयशंकर प्रसाद महादेवी वर्मा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत जी हैं।
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