Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की जीवनी और रचनायें

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नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय देखने जा रहे हैं। Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जो छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक है। उनकी मनमोहन कविताएं आज भी दिल को छू जाती है।

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : हिंदी साहित्य में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वे केवल कवि नहीं बल्कि लेखक, उपन्यासकार, कथाकार और संपादक भी थे। निराला अपने नाम की तरह अपनी रचनाओं में कुछ निराला करने का प्रयास करते थे। इतिहास के पन्नों में छिपे इस नाम को उजागर करने के लिए हमने या लेख लिखा है। उनकी संपूर्ण जीवनी जानने के लिए यह लेख पूरा अवश्य पढ़े।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का परिचय

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म बसंत पंचमी रविवार 21 फरवरी 1896 के दिन हुआ था, अपना जन्मदिन बसंत पंचमी को ही मानते थे। उनकी एक कहानी संग्रह ‘ लिली ‘ 21 फरवरी 1899 जन्मतिथि पर ही प्रकाशित की गई थी। रविवार को इनका जन्म हुआ था इसीलिए वह सूर्य कुमार के नाम से जाने जाते थे। इनके पिता पंडित राम सहाय सिपाही की नौकरी करते थे और उनकी माता रुक्मणी थी जब निराला जी 3 वर्ष के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई उसके बाद उनके पिता ने उनकी देखभाल की।

नाम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
उपनाम निराला
जन्म तिथि 21 फरवरी 1896 / 1897 (विवादित)
जन्म स्थान महीसागर, जिला मेदनीपुर ( पश्चिम बंगाल)
पिता का नाम पं. रामसहाय तिवारी
माता का नाम रुक्मिणी देवी
पत्नी का नाम मनोहर देवी
बच्चे एक पुत्री
प्रमुख रचनाएँ गीतिका, तुलसीदास राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति, परिमल, अनामिका आदि
भाषा हिंदी, बांग्ला, अंग्रेजी, संस्कृत
साहित्य काल आधुनिक काल (छायावाद)
मृत्यु तिथि 15 अक्टूबर 1961
मृत्यु स्थान प्रयागराज (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश
पुरस्कार पद्म भूषण (मरणोपरांत)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की शिक्षा

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : उनकी प्रारंभिक शिक्षा महिषा दल हाई स्कूल से हुई थी परंतु उन्हें वह पद्धति में रुचि नहीं लगी। फिर उनकी शिक्षा बंगाली माध्यम से शुरू हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई पास करने के बाद उन्होंने घर पर रह कर ही संस्कृत, अंग्रेजी, साहित्य का अध्ययन किया था। इसके बाद वह लखनऊ और फिर उसके बाद वह गढ़कोला उन्नाव आ गए थे।

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : शुरुआत के समय से ही उन्हें रामचरितमानस बहुत अच्छा लगता था। कुश्ती और तैरता में उनके प्रिय खेल थे स्वयं अध्ययन करते समय उन्होंने अनेक महान विचार को और इतिहासकारों के साहित्य भी पड़े, खास तौर पर उन पर श्री कृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु, और रविंद्र नाथ टैगोर के साहित्य और विचारों का विशेष प्रभाव था

निराला जी का वैवाहिक जीवन

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की शादी लगभग 15 साल की आयु में हो गई थी। उनकी धर्मपत्नी का नाम मनोहर देवी था। जो रायबरेली जिले के डायमंड गांव के पंडित रामदयाल की पुत्री थी उनकी पत्नी ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी और संगीत में रुचि रखती थी। विवाह के बाद उनकी पत्नी ने निराला जी से हिंदी भाषा सीख ली और हिंदी भाषा में कविता लिखना शुरू किया।

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : लेकिन निराला जी को अपनी पत्नी का साथ जीवन के कुछ ही सालों तक मिल सका, क्योंकि 20 साल की उम्र में मनोहर देवी का देहांत हो गया। मनोहर देवी और निराला जी को एक पुत्री थी मां के गुजर जाने के बाद अपनी बेटी का पालन पोषण निराला जी ने स्वयं की।

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : बेटी के बड़े होने पर निराला जी ने उसकी शादी कर दी। ऐसा कहा जाता है की विधवा होने के बाद वह बीमार पड़ गई और उनका भी निधन हो गया। कुछ स्रोत बताते हैं कि उनकी बेटी का निधन प्रसूति के दौरान हुआ। अपने पत्नी और एकमात्र आधार अपनी बेटी के जाने के बाद निराला जी बेहद दुखी हो गए थे।

पारिवारिक कठिनाई

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : निराला जी के जीवन में बचपन से ही विपत्ति आनी शुरू हो गई थी उनका जीवन काफी हद तक कठिनाइयों से भरा था। अपने प्रिय जनों का साथ उन्हें बहुत ही कम समय के लिए मिला। जब वे 3 साल के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया। इसके बाद 20 वर्ष कि आयु उनकी पत्नी का निधन हो गया। महामारी के दौरान उनके चाचा और भाई की मृत्यु हो गई।

उन्होंने अपनी इकलौती बेटी की मौत भी अपनी आंखों से देखी। अपने जीवन काल में उन्होंने कई आर्थिक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा। अपने जीवन में कई सारी कठिनाइयों का सामना किया लेकिन कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने लक्ष्य पर डटे रहे।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का कार्य क्षेत्र

  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला दिनेश साल 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य में नौकरी की।
  • उसके बाद उन्होंने संपादन और लेखन के रूप में 1922 1923 तक समन्वय के संपादक का कार्य किया
  • 1923 में उन्होंने मतवाला संपादक मंडल में काम किया।
  • 1935 के दौरान उनकी नियुक्ति लखनऊ के गंगा पुस्तकालय में हुई
  • 1935 से 1940 के दौरान वे लखनऊ में ही रहे। फिर 1942 से इलाहाबाद में रहने लगे।
  • अपनी मृत्यु के समय में इलाहाबाद में ही थे और अपना अंतिम समय वही बिताया।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्यिक जीवन

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : निराला जी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविताएं लिखने से की। 1921 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘गीतिका ‘ का प्रकाशन हुआ उसके बाद उनकी निराली कल्पनाशीलता से अनेक काव्य संग्रह, उपन्यास, कहानी संग्रह, निबंध और समीक्षाएं लिखी गई और प्रकाशित हुई। निराला जी का साहित्यिक जीवन काल लगभग 44 वर्षों का था और वहीं से उनके साहित्यिक जीवन शुरू हुआ, जो उनकी मृत्यु के उपरांत समाप्त हुआ। छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भी थे। इससे उनके साहित्यिक जीवन के व्यापक दायरे का अंदाजा लगाया जा सकता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की भाषा शैली

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की भाषा शैली हिंदी साहित्य के अद्भुत मानी जाती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में विभिन्न प्रयोग की है उनकी भाषा में नवीनता और प्रयोगधर्मिता, गहन भावनाओं की अभिव्यक्ति, प्रतीकात्मकता और बिंबात्मकता, अलंकारों का कौशल प्रयोग, चंदू की विविधता और शब्दों का सही चयन उनकी भाषा शैली को बेहद सुंदर और मन को मोहित करने वाला बनाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की रचनाएं

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : 1920 ई के आसपास उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया था। उनकी सबसे पहली रचना एक गीत जन्मभूमि पर लिखी गई थी। ‘जूही की कली ‘ बहुत ही लंबे समय तक का प्रसिद्ध रही थी।

काव्य संग्रह

  • अनामिका(1923)
  • परिमल (1930)
  • गीतिका (1936)
  • अनामिका (द्वितीय)
  • तुलसीदास(1939)
  • ककुकुरमुत्ता (1942)
  • आणिमा (1943)
  • बेला (1946)
  • नये पत्ते (1946)
  • अर्चना (1950)
  • आराधना (1953)
  • गीत कुंज (1954)
  • सांध्य कांकाली
  • अपरा (संचयन)

उपन्यास

  • अप्सरा (9131)
  • अलका (1933)
  • प्रभावती (1936)
  • निरुपमा (1936)
  • कुल्ली भाट (1938-39)
  • बिल्लेसूर बकरिहा (1942)
  • चोटि का पकड़ (1946)
  • काले कारनामें (1950)
  • चमेली
  • इंदुलेखा

कहानी संग्रह

  • लिली(1934)
  • सखी (1935)
  • सुकुल की बीबी (1941)
  • चतुरी चमार (1945)
  • देवी (1948)

निबंध

  • रविंद्र कविता कानन (1929)
  • प्रबंध पद्म (1934)
  • प्रबंध प्रतिमा (1940)
  • चाबुक (1942)
  • चयन (1957)
  • संग्रह (1963)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की अनुवादित रचनाएं

  • रामचरितमानस (1948, विनय-भाग, खड़ी बोली हिंदी में पद्यानुवाद )
  • आनंद मठ ( वाड्डला से गद्य अनुवाद )
  • विष वृक्ष
  • कृष्णकांत की वसीयतनामा
  • कपाल कुंडला
  • दुर्गेश नंदिनी
  • राज सिंह
  • राजरानी
  • देवी चौधरानी
  • युगलांगूलीय
  • चंद्रशेखर
  • रजनी
  • श्री रामकृष्ण वचनामृत ( तीन खंडो में )
  • परीव्राजक
  • भारत में विवेकानंद
  • राजयोग (अंसानुवाद)

सूर्यकांत त्रिपाठी जी की मृत्यु

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन का अंतिम समय अस्वस्थता के कारण प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में बिता तथा इसी कमरे में 15 अक्टूबर 1961 को कवि निराला जी की मृत्यु हो गई।

सूर्यकांत त्रिपाठी जी को पुरस्कार

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के उनके मरणोपरांत भारत का प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण” से सम्मानित किया गया।

उम्मीद है, आपको सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय पर आधारित ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Hindi education 24 के साथ बने रहे।

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