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गोस्वामी तुलसीदास (जीवन / साहित्य परिचय ) Goswami TTulsidas Ka Jivan Parichay in 2024

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Tulsidas Ka Jivan Parichay : गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म एवं मृत्यु काल से संबंधित प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। किंतु अनेक विद्वानों द्वारा माना जाता है कि तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर नामक गांव में हुआ था। वहीं कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान सोरों, एटा जनपद भी मानते हैं। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे जबकि माता का नाम हुलसी देवी था। तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था। बताया जाता है कि तुलसी का प्रारंभिक जीवन घोर कष्ट में बीता था। बाल्यावस्था में उनके माता-पिता का निधन हो गया। जिसके कारण उन्हें भिक्षाटन द्वारा जीवन यापन करने को विवश होना पड़ा।

Gosvami TulsiDas Ka Jivan Parichay

तुलसी दास का जीवन परिचय : आइये रामभक्ति शाखा के महाकवि ‘गोस्वामी तुलसी दास’ का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं

नाम गोस्वामी तुलसीदास
उपनाम रामबोला
जन्म सन् 1532
जन्म स्थान राजपुर गाँव, बाँदा जिला, उत्तर प्रदेश
पिता का नाम आत्माराम दुबे
माता का नाम हुलसी देवी
गुरु नरहरीदास
पत्नी का नाम रत्नावली
दर्शन वैष्णव
विधा पद्य
प्रमुख रचनायें रामचरितमानस , विनय पत्रिका , गितावली , कवितावली , वैराग्य-संदीपनी आदि।
भाषा अवधी , ब्रज
साहित्य काल भक्तिकाल (रामभक्ति शाखा)
मृत्यु सन् 1632

Tulsidas Ji Ki Mrityu Kab Hua Tha: इसके बाद तुलसीदास जी वाराणसी लौट आए। ये उनके जीवन के आखिरी दिन थे। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने उसी स्थान पर हनुमान मंदिर बनवाया, जहाँ वे उनसे पहली बार मिले थे। वह मंदिर आज संकटमोचन हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है और देश-विदेश में बहुत प्रसिद्ध है। मंदिर बन जाने के बाद उन्होंने उसी तुलसी घाट पर समाधि ली और प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु के वर्ष के बारे में आम सहमति है, माना जाता है कि यह 1623 ई. (संवत 1680) था। आज उस घाट को तुलसी घाट के नाम से भी जाना जाता है।

गुरु नरहरीदास से मिला राम भक्ति का मार्ग

Tulsidas Ka Jivan Parichay : गोस्वामी तुलसीदास को गुरु नरहरी दास की कृपा से राम भक्ति का मार्ग मिला था। वही रत्नावली से उनका विवाह होना और उनकी बातों से प्रभावित होकर तुलसी का गृह त्याग करके बैराग धारण करने की प्रथा प्रचलित है। कुछ वर्ष के वैवाहिक जीवन के बाद जब उनकी पत्नी मायके गई तब वह भी उनके पीछे ससुराल चले गए। किंतु पत्नी की चेतावनी सुनकर उन्होंने वैराग्य ग्रहण कर लिया।

रामचरितमानस महाकाव्य का किया सृजन

Tulsidas Ka Jivan Parichay : पारिवारिक जीवन से विरक्त होने के बाद को गोस्वामी तुलसीदास काशी, चित्रकूट, अयोध्या आदि स्थान का भ्रमण करते रहे। माना जाता है कि सन् 1574 में अयोध्या में उन्होंने रामचरितमानस महाकाव्य की रचना प्रारंभ की जिसका कुछ अंश उन्होंने काशी में भी लिखा। इसके बाद उन्होंने कई अन्य ग्रंथो की रचना की।

Tulsidas ने अपना बाकी जीवन काशी में प्रभु श्री राम कथा का गान करते हुए गुजरा। सन् 1623 के लगभग उन्होंने काशी में ही अपना शरीर त्याग दिया। तुलसीदास के निधन काल के संबंध में मतभेद नहीं है। सभी विद्वान उनकी मृत्यु 1680 (सन 1623ई.) की श्रावण शुक्ल सप्तमी को मानते हैं। तुलसी दास जी की मृत्यु के संबंध में यह दोहा बहुत प्रचलित है।

Tulsidas Ka Jivan Parichay

संवत सोलह सौ असि, असिगंग के तीर
श्रावण शुक्ल सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर ।।

तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएं

Tulsidas Ka Jivan Parichay (Tulsidas Ki Pramukh Rachnaye) : गोस्वामी तुलसीदास लोकमंगल की साधना के कवि हैं। उन्हें समन्वय का कवि भी कहा जाता है। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस हिंदी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना जाता है। बता दे की तुलसीकृत 12 कृतियां प्रामाणिक मानी जाती है। तुलसीदास जी की सभी प्रमुख रचनाओं (Tulsidas Ki Rachnaon Ke Naam) की जानकारी जो इस प्रकार है :-

रचनाएं भाषा
रामचरित मानस अवधी
विनय पत्रिका अवधी
गितावली ब्रजभाषा
कवितावली ब्रजभाषा
दोहावली अवधी
हनुमान-वाहक अवधी
जानकी-मंगल अवधी
वैराग्य-संदीपनी अवधी
कृष्ण-गितावली ब्रजभाषा
पार्वती-मंगल अवधी
रामलला-नहछु अवधी
बरवै-रामायण अवधी

तुलसीदास जी की भाषा शैली

Tulsidas Ka Jivan Parichay : गोस्वामी तुलसीदास को संस्कृत, अवधि और ब्रजभाषा पर और असाधारण अधिकार था। वे लोग मंगल की साधना के कवि के रूप में विख्यात हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि उन्होंने शास्त्रीय भाषा संस्कृत के स्थान पर लोकजन की भाषा अवधि और ब्रजभाषा को साहित्य रचना के रूप में चुना था।

रामचरितमानस महाकाव्य की रचना मुख्यतः दोहा और चौपाई छंद में हुई है। इसकी भाषा अवधि है जबकि गीतावली, कवितावली और कृष्ण गीतावली ब्रजभाषा में रचित पद शैली की रचनाएं हैं। गोस्वामी तुलसीदास की लोक और शास्त्र दोनों में गहरी पैठ है। वही जीवन की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंग का उन्हें अचूक समझ है यही विशेषताओं ने महाकवि का दर्जा प्रदान करती है।

गोस्वामी तुलसीदास (जीवन / साहित्य परिचय ) Goswami TTulsidas Ka Jivan Parichay in 2024

FAQS (Questions Related to तुलसी दास )

तुलसी दास का जीवन परिचय कैसे लिखे ?

आइये रामभक्ति शाखा के महाकवि ‘गोस्वामी तुलसी दास’ का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से लिखते है। गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म एवं मृत्यु काल से संबंधित प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। किंतु अनेक विद्वानों द्वारा माना जाता है कि तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर नामक गांव में हुआ था। वहीं कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान सोरों, एटा जनपद भी मानते हैं। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे जबकि माता का नाम हुलसी देवी था। तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था। बताया जाता है कि तुलसी का प्रारंभिक जीवन घोर कष्ट में बीता था। बाल्यावस्था में उनके माता-पिता का निधन हो गया। जिसके कारण उन्हें भिक्षाटन द्वारा जीवन यापन करने को विवश होना पड़ा।

तुलसीदास का जन्म कब और कहा हुआ था?

तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर नामक गांव में हुआ था। वहीं कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान सोरों, एटा जनपद भी मानते हैं।

तुलसीदास का मृत्यु कब और कहा हुई थी?

तुलसी दास का जीवन परिचय : सन् 1623 के लगभग उन्होंने काशी में ही अपना शरीर त्याग दिया। तुलसीदास के निधन काल के संबंध में मतभेद नहीं है। सभी विद्वान उनकी मृत्यु 1680 (सन 1623ई.) की श्रावण शुक्ल सप्तमी को मानते हैं। तुलसी दास जी की मृत्यु के संबंध में यह दोहा बहुत प्रचलित है।

तुलसीदास जी की भाषा शैली

तुलसी दास का जीवन परिचय : गोस्वामी तुलसीदास को संस्कृत, अवधि और ब्रजभाषा पर और असाधारण अधिकार था। वे लोग मंगल की साधना के कवि के रूप में विख्यात हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि उन्होंने शास्त्रीय भाषा संस्कृत के स्थान पर लोकजन की भाषा अवधि और ब्रजभाषा को साहित्य रचना के रूप में चुना था।
रामचरितमानस महाकाव्य की रचना मुख्यतः दोहा और चौपाई छंद में हुई है। इसकी भाषा अवधि है जबकि गीतावली, कवितावली और कृष्ण गीतावली ब्रजभाषा में रचित पद शैली की रचनाएं हैं। गोस्वामी तुलसीदास की लोक और शास्त्र दोनों में गहरी पैठ है। वही जीवन की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंग का उन्हें अचूक समझ है यही विशेषताओं ने महाकवि का दर्जा प्रदान करती है।

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