Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan : स्वातन्त्र्य-संग्राम की ज्योति और पत्रकारिता की साधना में जिन साहित्यकारों और गद्य-शैलीकारों का अभ्युदय हुआ है, उनमें प्रभाकर जी का स्थान विशिष्ट है। हिन्दी में लघुकथा, संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज की अनेक विधाओं का इन्होंने प्रवर्तन और पोषण किया है। ये एक आदर्शवादी पत्रकार रहे हैं। अतः इन्होंने पत्रकारिता को भौतिक स्वार्थों की सिद्धि का साधन न बनाकर उच्च मानवीय मूल्यों की खोज और स्थापना में ही लगाया है।
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का जीवन परिचय
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan प्रभाकर जी का जन्म सन् 1906 ई० में सहारनपुर स्थित देवबन्द ग्राम के एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता पं० रमादत्त मिश्र की आजीविका पूजा-पाठ और पुरोहिताई थी, पर विचारों की महानता और व्यक्तित्त्व की दृढ़ता में वे श्रेष्ठ थे.
उनका जीवन अत्यन्त सरल और सात्विक था, पर प्रभाकर जी की माता का स्वभाव बड़ा कर्कश और उग्र था। अपने एक संस्मरण ‘मेरे पिताजी‘ में लेखक ने दोनों का परिचय देते हुए लिखा है…. “वे दूध-मिश्री तो माँ लाल मिर्च। इनकी शिक्षा प्रायः नगण्य ही हुई। एक पत्र में इन्होंने लिखा है…” हिन्दी शिक्षा (सच माने) पहली पुस्तक के दूसरे पाठ ख ट म ल खटमल, ट म टम टमटम। फिर साधारण संस्कृत। बस हरि ओम। यानी बाप पड़े न हम।”
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan : उस किशोर अवस्था में जबकि व्यक्तित्त्व के गठन के लिए विद्यालयों की शरण आवश्यक होती है. प्रभाकर जी ने राष्ट्रीय संग्राम में भाग लेना ही अधिक पसन्द किया। जब खुर्जा के संस्कृत विद्यालय में पढ़ रहे थे, तब इन्होंने प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता मौलाना आसिफ अली का भाषण सुना, जिसका इन पर इतना असर हुआ कि ने परीक्षा छोड़कर चले आये। उसके बाद इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र-सेवा में लगा दिया। ये सन् 1930-32 तक और सन् 1942 में जेल में रहे और निरंतर राष्ट्र के उच्च नेताओं के सम्पर्क में आते रहे।
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan इनके लेख इनके राष्ट्रीय जीवन के मार्मिक संस्मरणी की जीवन्त झाँकियाँ हैं, जिनमें भारतीय स्वाधीनता के इतिहास के महत्त्वपूर्ण पृष्ठ भी हैं। स्वतन्यता के बाद इन्होंने अपना पूरा जीवम पत्रकारिता में लगा दिया। 9 मई, सन् 1995 ई० को इस महान् साहित्यकार का निधन हो गया।
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हिंदी साहित्य परिचय
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हिंदी साहित्य के एक बहुमुखी लेखक थे। उन्होंने निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज और लघु कथाएँ लिखीं। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, मानवता, सामाजिक समरसता और देशभक्ति के विचार प्रमुख रूप से मिलते हैं। उन्होंने सरल और सहज भाषा में अपनी रचनाएँ लिखीं, जो पाठकों को आसानी से समझ में आ जाती हैं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं: ‘अतीत के झरोखे से’, ‘माटी हो गई सोना’, ‘बाजे पायलिया के घुँघरू’, ‘दीप जले शंख बजे’, ‘जिंदगी मुस्कुराई’, ‘आकाश के तारे’ आदि। उन्हें हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan : प्रभाकर जी के प्रसिद्ध प्रकाशित ग्रन्य हैं-
प्रभाकर जी के प्रसिद्ध प्रकाशित ग्रन्य हैं– 1. आकाश के तारे, 2. धरती के फूल, ३. जिन्दगी मुस्करायी, 4. भूले बिसरे चेहरे, 5. दीप जले शंख बजे, 6. महके आँगन चहके द्वार, 7. माटी हो गयी सोना, 8. बाजे पायलिया के घुंघरू, 9. क्षण बोले कण मुस्काये। इनके सम्पादन में दो पत्र सहारनपुर से प्रकाशित हुए थे नया जीवन और विकास। इन पत्रों से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक समस्याओं पर इनके निर्भीक आशावादी विचारों का परिचय प्राप्त होता है।
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan : कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर जी द्वारा लिखित कृति क्या है?
उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ:
- निबंध: जिंदगी मुस्कुराई, माटी हो गई सोना, बाजे पायलिया के घुँघरू, दीप जले-शंख बजे
- संस्मरण: अतीत के झरोखे से
- रेखाचित्र: धरती के फूल
- लघु कथा संग्रह: आकाश के तारे
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan : प्रभाकर जी का गद्य
प्रभाकर जी का गद्य इनके जीवन से ढलकर आया है। इनकी रचनाओं में कालगत आत्मपरकता, चित्रात्मकता और संस्मरणात्मकता की प्रमुखता दिखायी देती है। पत्रकारिता के क्षेत्र में इन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दिनों में अनेक सेनानियों का संस्मरण इन्होंने लिखा है। इन्होंने लेखन के अतिरिक्त वैयक्तिक स्नेह और सम्पर्क से भी हिन्दी के अनेक नये लेखकों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया था।
प्रभाकर जी का देश-प्रेम
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan: इनके व्यक्त्तित्त्व की दृढ़ता, विचारों की सत्यता, अन्याय के प्रति आक्रोश, सहृदयता, उदारता और मानवीय करुणा की झलक इनकी रचनाओं में मिलती है। अपने विचारों में ये उदार, राष्ट्रवादी और मानवतावादी हैं। इसलिए देश-प्रेम और मानवीय निष्ठा के अनेक रूप इनके लेखों में मिलते हैं। इन्होंने हिन्दी गद्य को नये मुहावरे, नयी लोकोक्तियों और नयी सूक्तियाँ दी हैं। कविता इन्होंने नहीं लिखी पर कवि की भावुकता और करुणा इनके गद्य में छलकती है।
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan यथार्थ जीवन की दर्दभरी अनुभूतियों से इनके गद्य में भी कविता का सौन्दर्य भर उठा है। इसीलिए इनके शब्द-निर्माण में जगह-जगह चमत्कार है, वार्तालाप में विदग्धता है और परिस्थिति चित्रण में नाटकीयता है। इनके वाक्य-विन्यास में भी विविधता रहती है। पात्र और परिस्थिति के साथ इन्होंने वाक्य-रचना बदली है। विनोद की परिस्थिति में छोटे वाक्य, चिन्तन की मनःस्थिति में लम्बे वाक्य और भावुकता के क्षणों में व्याकरण के कठोर बन्धन से मुक्त कवित्वपूर्ण वाक्य-रचना भी की है।
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar Ka Jivan : कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी की भाषाशैली
प्रभाकर जी की भाषा सामान्यतया तत्सम शब्द प्रधान, शुद्ध और साहित्यिक खड़ीबोली है। इन्होंने उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं के साथ देशज शब्दों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया है। सरलता, मार्मिकता, चुटीलापन, व्यंग्य और भावों को व्यक्त करने की क्षमता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। वर्णनात्मक, भावात्मक, नाटक-शैली के रूप इनकी रचनाओं में देखने को मिलते हैं।
प्रस्तुत लेख ‘राबर्ट नर्सिंग होम में‘ में लेखक ने इन्दौर के राबर्ट नर्सिंग होम की एक साधारण घटना को इस प्रकार मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है कि वह हमें सच्चे धर्म अर्थात् मानव-सेवा और समता का पाठ पढ़ानेवाली बन गयी है। वहाँ इन्होंने तीन सेवारत ईसाई महिलाओं को देखा मदर मार्गरेट, मदर टेरेजा और सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड। मदर मार्गरेट अत्यन्त बूढ़ी थी, मदर टेरेजा अधेड़ आयु की और सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड पूर्ण युवती। मदर टेरेजा फ्रांस की थीं और सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड जर्मनी की, दोनों ही देश दो विश्व-युद्धों में विरोधी देश रहे हैं। पर मदर टेरेजा और सिस्टर क्रिस्ट हैल्ड इस संकीर्ण राष्ट्रीयता से मुक्त थीं। उन्हें एक ही ईसाई धर्म से उदार मानवता और निःस्वार्थ मानव सेवा का पाठ प्राप्त हुआ था। इस प्रकार लेखक ने अपने उदार मानवीय दृष्टिकोण को भी इस लेख में प्रकट किया है।
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Maithilisharan Gupt Ka Jivan Parichay in Hindi (मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय)
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के माता-पिता का नाम
इनके पिता का नाम पं० रमादत्त मिश्र तथा मत का नाम मिश्री देवी था।
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की कौन सी रचना है?
नकी कुछ प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:
निबंध: जिंदगी मुस्कुराई, माटी हो गई सोना, बाजे पायलिया के घुँघरू, दीप जले-शंख बजे
संस्मरण: अतीत के झरोखे से
रेखाचित्र: धरती के फूल
लघु कथा संग्रह: आकाश के तारे
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का साहित्यिक परिचय क्या है?
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हिंदी साहित्य के एक बहुमुखी लेखक थे। उन्होंने निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज और लघु कथाएँ लिखीं।
उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, मानवता, सामाजिक समरसता और देशभक्ति के विचार प्रमुख रूप से मिलते हैं।
उन्होंने सरल और सहज भाषा में अपनी रचनाएँ लिखीं, जो पाठकों को आसानी से समझ में आ जाती हैं।
उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं: ‘अतीत के झरोखे से’, ‘माटी हो गई सोना’, ‘बाजे पायलिया के घुँघरू’, ‘दीप जले शंख बजे’, ‘जिंदगी मुस्कुराई’, ‘आकाश के तारे’ आदि।
उन्हें हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर जी द्वारा लिखित कृति क्या है?
उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ:
निबंध: जिंदगी मुस्कुराई, माटी हो गई सोना, बाजे पायलिया के घुँघरू, दीप जले-शंख बजे
संस्मरण: अतीत के झरोखे से
रेखाचित्र: धरती के फूल
लघु कथा संग्रह: आकाश के तारे
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की मृत्यु कब हुई थी?
9 मई, सन् 1995 ई० को इस महान् साहित्यकार का निधन हो गया।
दीप जले शंख बजे किसकी कृति है?
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर जी की।
प्रभाकर जी के पिता का क्या नाम था?
इनके पिता का नाम पं० रमादत्त मिश्र था।
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