डॉ शंकर दयाल शर्मा का जीवन परिचय : राजनीति के एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने जीवन में कानून राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया वह भारतीय गणराज्य के नवे राष्ट्रपति 1992 से 1997 तक रहे और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अथक प्रयास किया। वे ना केवल एक कुशल राजनीतिज्ञ थे बल्कि एक विद्वान स्वतंत्रता सेनानी और सच्चे देशभक्त भी थे। उनकी सादगी ईमानदारी और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें देशवासियों के बीच अत्यधिक सम्मान दिलाया।
डॉ शंकर दयाल शर्मा जन्म और प्रारंभिक जीवन
डॉ शंकर दयाल शर्मा : शर्मा जी का जन्म 19 अगस्त 1918 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में हुआ था। उनका जन्म एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ जिसने उन्हें नैतिक और संस्कारों की मजबूत न्यू डी 55 से ही वे अध्ययनशील और गंभीर प्रवृत्ति के थे उनके पिता खूबी लाल शर्मा ने उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाया और जीवन में आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी।
डॉ शंकर दयाल शर्मा की शिक्षा
डॉ शर्मा का शिक्षा के प्रति झुकाव प्रारंभ से ही स्पष्ट था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रायसेन में प्राप्त की और फिर आगे की पढ़ाई के लिए “सेंट जॉन्स कॉलेज आगरा” गए, जहां से उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. और कानून में एल.एल.एम. की डिग्री हासिल की। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी लक विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. और कानून में एल.एल.एम. की डिग्री हासिल की। इसके साथी उन्होंने “हार्वर्ड लॉ स्कूल” और “लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स” से भी उच्च शिक्षा प्राप्त की उनकी एकेडमिक उपलब्धियां के कारण उन्हें “कैंब्रिज विश्वविद्यालय” से डॉक्टरेट की उपाधि भी प्रदान की गई।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
डॉ शर्मा ने केवल एक शिक्षा विद थे बल्कि एक सच्चे देशभक्त भी थे उन्होंने महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के दौरान वे सक्रिय रूप से शामिल हुए और इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता के लिए भी होनी चाहिए।
राजनीतिक कैरियर
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद डॉक्टर शर्मा ने कांग्रेस पार्टी के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री 1952 से 1956 तक रहे और इस दौरान उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किया इसके बाद वे केंद्र सरकार में विभिन्न पदों पर आसीन रहे।
उन्होंने भारत सरकार में संचार मंत्री, कानून मंत्री, और शिक्षा मंत्री के रूप में भी सेवाएं दी। उनकी योग्यता और ईमानदारी के कारण उन्हें तीन प्रमुख राज्यों आंध्र प्रदेश पंजाब और महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया इन पदों पर रहते हुए उन्होंने अपने कर्तव्यों का पूरी निष्ठा और पारदर्शिता से निर्वहन किया। विशेष रूप से पंजाब के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल महत्वपूर्ण रहा जब राज्य उग्रवाद की चपेट में था उन्होंने सूझबूझ और धैर्य से वहां की स्थिति को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉ शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति कब बने?
डॉ शंकर दयाल शर्मा 25 जुलाई 1992 को भारत के नवे राष्ट्रपति बने उनके राष्ट्रपति पद का कार्यकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक स्थिरता का प्रतीक था वह संविधान के अनुरूप कार्य करने के पक्षधर थे और अपने कार्यकाल में उन्होंने हमेशा निष्पक्षता और ईमानदारी का पालन किया वे जनता और सरकार की बीच एक मजबूत सेट बने रहे और राष्ट्रपति पद की गरिमा को बनाए रखा। उनके कार्यकाल के दौरान देश ने कई राजनीतिक उत्तराव चढ़ाव देखे लेकिन उन्होंने हमेशा संविधान की मर्यादा को सर्वोपरि रखा। उन्होंने प्रधानमंत्री और अन्य राजनेताओं के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलने में सहायता की।
डॉ शंकर दयाल शर्मा व्यक्तित्व और विचारधारा
डॉ शर्मा एक सरल विनम्र और विद्वान व्यक्तित्व के धनी ते हुए कानून साहित्य और दर्शन में कारी रुचि रखते थे उन्हें उर्दू शायरी से भी विशेष लगाव था उनके भाषण शैली प्रभावशाली थे और वह अक्सर अपने भाषणों में भारतीय संस्कृति और संवैधानिक मूल्यों का उल्लेख करते थे। उनका मानना था कि लोकतंत्र की शक्ति जनता में निहित होती है और देश के प्रत्येक नागरिक सामान अधिकारों का हकदार है। उन्होंने हमेशा मानवाधिकारों सामाजिक न्याय और शिक्षा के महत्व को प्राथमिकता दी।

सम्मान और पुरस्कार
डॉ शंकर दयाल शर्मा को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। शिक्षा और कानून के क्षेत्र में उनके योगदान को विशेष रूप से सराहा गया। निधन डॉ शंकर दयाल शर्मा का निधन 26 दिसंबर 1999 को दिल्ली में हुआ.
डॉ शंकर दयाल शर्मा निधन
निधन डॉ शंकर दयाल शर्मा का निधन 26 दिसंबर 1999 को दिल्ली में हुआ। देश ने एक महान नेता और संविधान के सच्चे संरक्षक को खो दिया उनका जीवन आज भी भारतीय राजनीति और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
निष्कर्ष
शंकर दयाल शर्मा भारतीय राजनीति के उन दुर्लभ नेताओं में से थे जिन्होंने अपने सिद्धांतों और आदर्शों के साथ कभी समझौता नहीं किया। वे आज भी अपनी शादी की विट्ठल था और कर्म निष्ठा के लिए याद किए जाते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि ईमानदारी कड़ी मेहनत और देशभक्ति के साथ किसी भी ऊंचाई को छुआ जा सकता है। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में उनका योगदान सदैव अमिट रहेगा।
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