प्रसाद जी की जीवनी
JAISANKAR PRASAD KA JIWAN PARICHAY : जयशंकर प्रसाद जी का जन्म काशी के प्रसिद्ध सुहनी साहू नामक वैश्य परिवार में सन 1889 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम देवी प्रसाद था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा तो ठीक प्रकार हुई, परंतु अल्पआयु में ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण इनको अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी और वह केवल कक्षा 8 तक ही पढ़ पाए थे और व्यवसाय तथा परिवार का समस्त उत्तरदायित्व प्रसाद जी पर आ गया।
JAISANKAR PRASAD KA JIWAN PARICHAY : परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए भी श्रेष्ठ साहित्य लिखकर प्रसाद जी ने अनेक अमूल्य रत्न हिंदी साहित्य को प्रदान किया। परंतु प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे ऋणग्रस्तता, मुकदमेबाजी, परिजनों की मृत्यु आदि ने इन्हें रोग ग्रस्त कर दिया और 48 वर्ष की अल्पआयु में ही 1937 ईस्वी में इनका निधन हो गया।
पूरा नाम | जयशंकर प्रसाद |
उपाधि | महाकवि |
जन्म | 30 जनवरी, 1889 ई. वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 15 नवम्बर,1937 ई. (आयू – 48 वर्ष ) वाराणसी उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | देवी प्रसाद साहु |
माता का नाम | मुन्नी बाई |
पत्नी | विध्वंसनी देवी (1908 में ) , सरस्वती देवी (1917 में ) |
शिक्षा | अंग्रेजी , फारसी , उर्दू , हिन्दी व संस्कृत के ज्ञानी |
पेशा , | उपन्यासकार |
प्रमुख रचनायें | कामायनी , चित्रधार , आँसू , लहर , झरना , एक घूँट , विशाख , अजात शत्रु , आकाशदीप , आँधी , ध्रुवस्वामिनी , तितली और कंकाल |
विषय | कविता , उपन्यास , नाटक , निबंध और कहानी |
भाषा | हिन्दी , ब्रजभाषा , खड़ी बोली |
शैली | वर्णात्मक , भावात्मक , आलंकृत , सूक्तिपरक , प्रतीकात्मक |
साहित्य में स्थान | हिन्दी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण जयशंकर प्रसाद को ‘प्रसाद युग’ का निर्माणकर्ता तथा छायावाद का प्रवर्तक कहा जाता है। |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ, पद्मभूषण और मंगलाप्रसाद परितोषक ( कामायनी के लिए ) |
प्रसाद जी का साहित्यिक परिचय
JAISANKAR PRASAD KA JIWAN PARICHAY : जयशंकर प्रसाद प्रसिद्ध और सम्मानित हो गए क्योंकि वह लिखने और कला बनाने में वास्तव में अच्छे थे। जय शंकर प्रसाद ने अपनी लेखनी से भारतीय साहित्य को नया आयाम दिया। और उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय भावनाएं, भक्ति, नारी सम्मान और स्वतंत्रता प्रेम के महत्वपूर्ण मुद्दों पर जोर दिया गया।
JAISANKAR PRASAD KA JIWAN PARICHAY : प्रसाद जी हिंदी कवि के नाटककार कहानीकार उपन्यासकार तथा निबंध लेखक थे। और वे हिंदी के छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक थे। उन्होंने हिंदी कविता में छायावाद नामक लेखन शैली का निर्माण किया। वे जीवन के विभिन्न पहलुओं को विस्तृत रूप से देखने में मदद करती थी और कामायनी नामक प्रसिद्ध काव्य रचना से प्रेरित थी।
JAISANKAR PRASAD KA JIWAN PARICHAY : उन्होंने विभिन्न भावनाओं के बारे में महत्वपूर्ण कविताएं लिखिए उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएं प्रेम , जीवन , मृत्यु और नई शुरुआत के बारे में है उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाओं में कामायनी , मधुशाला, अमृतधारा और आगामी शामिल है। तथा नाटकों में स्कंद गुप्त और चंद्रगुप्त मौर्य मशहूर हैं। इन नाटकों में हुए ऐतिहासिक व्यक्तित्व को महानता के साथ दर्शाते हैं। और न्याय, धर्म और देश प्रेम के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
JAISANKAR PRASAD KA JIWAN PARICHAY : प्रसाद जी ने ऐसी किताबें लिखी जो आज भी हिंदी साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण है और इन किताबों से प्यार करने वाले लोगों को उन पर गर्व है। उन्हें अपनी इस योगदान के लिए कई ऐतिहासिक पुरस्कार मिले जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्मभूषण शामिल है।
प्रसाद जी की रचनाएं
JAISANKAR PRASAD KA JIWAN PARICHAY : जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में छायावाद की नीव रखी और उन्हें छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक माना जाता है, उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
काव्य रचना
कामायनी
आंसू
लहर
झरना
प्रेम – पथिक
चित्रधार
कानन कुसुम
करुणालय
उपन्यास
कंकाल
तितली
इरावती (अपूर्ण)
कहानी संग्रह
पंचायत
इंद्रजाल
आँधी
छाया देवदाशी
प्रतिध्वनि
आकाशदीप
नाटक, एकांकी, और निबंध
एक घूँट
चन्द्रगुप्त
स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य
अजातशत्रु
ध्रुवस्वामिनी
जनमेजय का नाग – यज्ञ
कामना
अग्नि मित्र (अपूर्ण )
पुरस्कार और सम्मान
मंगला प्रसाद पारितोषक कामायनी
साहित्य अकादमी पुरस्कार
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्म भूषण
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