हरित क्रांति का अभिप्राय है कि कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो नई कृषि नीति अपनाने के कारण सन् 1967-68 से प्रारम्भ हुई। हरित क्रांति का सम्बन्ध खेतों की हरियाली और कृषि उत्पादकता बढ़ाने से है।
भारत की चौथी पंचवर्षीय योजना में देश को खाद्यात्रों के लिए आत्मनिर्भर बनाने का उद्देश्य स्वीकार करते हुए हरित क्रांति (Green Revolution) का शुभारम्भ किया गया।
हरित क्रांति के अन्तर्गत कृषि के विकास के लिए सुनियोजित प्रयास किये गये, जैसे- परम्परागत तरीकों के स्थान पर कृषि के नवीन तकनीकों के प्रयोग द्वारा अधिक उत्पादन प्राप्त करना, उन्नत बीजों, रासायनिक खादों, सिंचाई सुविधाओं का तेजी से प्रयोग बढ़ाते हुए।
कृषि क्षेत्र में उत्त्पादकता की दृष्टि से क्रान्ति लाने का प्रयास करना, उत्पादन तकनीक में सुधार करते हुए हल के स्थान पर ट्रैक्टर, गोवर के स्थान पर रासायनिक खादों का प्रयोग, मानसूनी वर्षा के स्थान पर सिंचाई के नवीन साधन जैसे ट्यूबवेल तथा पम्प आदि द्वारा सिचाई का कार्य करना।
हरित क्रांति को जन्म देने वाले घटक

हरित क्रान्ति को जन्म देने वाले प्रमुख घटक निम्न हैं-
1. अधिक उपज देनेवाली उन्नत किस्मों (H. Y. V. P.) का प्रयोग।
2. रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग।
3. सिचाई की लघु योजनाओं का विस्तार करना।
4. सघन कृषि जिला कार्यक्रम योजना का आरम्भ।
5. आधुनिक कृषि उपकरणों का प्रयोग।
6. पौध संरक्षण कार्यक्रमों का विस्तार।
7. ‘बहुफसली’ कार्यक्रमों का विस्तार।
8. उचित दरों पर कृषि साख की पर्याप्त उपलब्धता।
9. भण्डारण एवं विपणन सुविधाओं का विस्तार।
10. परिवहन सुविधाएँ एवं ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण।
11. भूमि-कटाव को रोकने के लिए ‘भू-संरक्षण’ कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना।
12. कृषकों को न्यूनतम मूल्य की गारण्टी।
13. कृषि शोधों, शिक्षा एवं प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार।
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भारत में हरित क्रांति से लाभ
भारतीय कृषि को हरित क्रांति से निम्न लाभ प्राप्त हुए हैं-
1.हरित क्रान्ति से विभित्र कृषि फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ा है। गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा जादि खाद्य फसलों के उत्पादन में वृद्धि के साथ भारत खाद्यार उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है।
2. हरित क्रान्तिने ही भारतीय कृषि को एक व्यवसाय के रूप में स्थापित किया है। भारतीय कृषि अप केवल पेट भरने का साधन नहीं वरन् आय अर्जन का भी मुख्य स्रोत है।
3. कृषि क्षेत्र के विकास ने देश के औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दिया है। वर्तमान में कृषि ने देश में पूँजी निर्माण एवं बचतों में पर्याप्त योगदान दिया है।
4. हरित क्रांति के कारण भारत खाद्यान की दृष्टि से आत्मनिर्भर हो चुका है जिससे देश में खायापों के आयात में तेजी से कमी आयी है।
5. हरित क्रान्ति ने कृषि एवं उससे सम्बन्धित क्रियाओं में रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित किये हैं जिससे देश की व्यावसायिक संरचना विस्तृत एवं आप को अर्जक बन गयी है।
भारत में हरित क्रान्ति का मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है। भारत के उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु राज्यों में हरित क्रांति का आश्चर्यजनक प्रभाव देखने को मिलता है। हरित क्रांति अपनाकर बड़े कृषक अधिक धनी हुए हैं. लेकिन भूमिहीन किसान इससे अधिक लाभ नहीं उठा सके। कुल मिलाकर कृषि उत्पादन को दिशा में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। इसीलिए भारत में दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता है।
हरित क्रांति को सफल बनाने के लिए सुझाव
भारत में हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं-
1. कृषि उत्पादन सम्बन्धी सरकारी विभागों में समन्वय बढ़ाना।
2. हरित क्रान्ति का सन्तुलित क्षेत्रीय विस्तार करना।
3. सभी कृषि फसलों को हरित क्रांति में शामिल करना।
4. भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करना।
5. सिचाई के साधनों का पर्याप्त विकास करना। इसके अन्तर्गत लघु सिचाई परियोजनाओं पर विशेष बल देना।
6. किसानों को उचित व्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना।
7. कृषि उपज के विपणन को व्यवस्था करना।
8. सहकारी कृषि को प्रोत्साहन देना।
9. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सूजन करना।
10. कृषि में उर्वरक एवं कीटनाशक दवाओं के प्रयोग को प्रोत्साहन देना।
11. भूमि का गहनतम एवं अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करना।
12. प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करना।

हरित क्रांति की शुरुआत क्यों हुई?
अकाल और खाद्य संकट: 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत को भयानक अकाल का सामना करना पड़ा था। देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती थी। अनाज आयात: भारत को विदेशों से अनाज आयात करना पड़ रहा था, जो देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ था। कृषि में पारंपरिक तरीके: पारंपरिक कृषि तरीकों से इतना अनाज पैदा नहीं किया जा सकता था कि बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा किया जा सके।
भारत में हरित क्रांति: एक संक्षिप्त विवरण
भारत में हरित क्रांति मुख्यतः 1960 के दशक के मध्य से शुरू हुई थी। यह एक ऐसा कालखंड था जब भारतीय कृषि ने आधुनिक तकनीकों को अपनाकर अनाज उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की।
हरित क्रांति की शुरुआत क्यों हुई?
- अकाल और खाद्य संकट: 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत को भयानक अकाल का सामना करना पड़ा था। देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती थी।
- अनाज आयात: भारत को विदेशों से अनाज आयात करना पड़ रहा था, जो देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ था।
- कृषि में पारंपरिक तरीके: पारंपरिक कृषि तरीकों से इतना अनाज पैदा नहीं किया जा सकता था कि बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा किया जा सके।
हरित क्रांति के प्रमुख तत्व
- उन्नत बीज: उच्च उपज देने वाले बीजों का विकास और किसानों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
- सिंचाई: सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करके फसलों को पानी की पर्याप्त आपूर्ति करना।
- रासायनिक उर्वरक: मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना।
- कीटनाशक: फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों का उपयोग करना।
- कृषि यंत्र: ट्रैक्टर और अन्य कृषि यंत्रों का उपयोग करके खेती की उत्पादकता बढ़ाना।
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