Bhagat Singh : शाहिद-ए-आजम भगत सिंह की जीवन यात्रा

Bhagat Singh

Bhagat Singh : “शहीद-ए-आजम” भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली युवा क्रांतिकारीयों में से एक माना जाता है। उन्होंने मात्र 23 वर्ष की अल्प आयु में ही अपने साथियों के साथ देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिया। जिसके कारण वह आजादी की लड़ाई के समय सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकन बन गए थे। 27 सितंबर को भगत सिंह की जयंती मनाई जाती है। आईये अब हम इस महान क्रांतिकारी Bhagat Singh शहीद-ए -आजम भगत सिंह के जीवन परिचय और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी अहम भूमिका के बारे में जानेंगे।

नाम भगत सिंह (Bhagat Singh)
उपाधि शहीद-ए-आजम
जन्म तिथि 27 सितंबर, 1907
जन्म स्थान बांगा गाँव, लायलपुर जिला, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान)
भाई-बहन रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलवीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर
पिता किशन सिंह संधू
माता विद्यावती कौर
रचानायें मैं नास्तिक क्यों हूँ
नारा इंकलाब जिंदाबाद
शिक्षा नेशनल कॉलेज (लाहौर पाकिस्तान )
संगठन नौजवान भारत सभा
मृत्यु 23 मार्च 1931 (उम्र 23वर्ष ) लाहौर सेंट्रल जेल (लाहौर पाकिस्तान)

भगत सिंह का जीवन परिचय

Bhagat Singh : भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर सन 1907 को लायलपुर जिले के बंगा गांव में जो अभी (वर्तमान पाकिस्तान ) में हुआ था। उनके पैतृक गांव खटकड़ कला है जो पंजाब,, भारत में है इनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह संधू और घर के कई सदस्य जेल में थे। उन्हें वर्ष 1906 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जबरन लागू किए हुए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने की इल्जाम में जेल में डाल दिया गया था। Bhagat Singh की माता का नाम विद्यावती कौर था। उनका परिवार एक आर्य-सामाजी सिख परिवार था।

भगत सिंह की आरंभिक शिक्षा

Bhagat Singh : भगत सिंह ने अपनी पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता “किशन सिंह” ने उन्हें ‘दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल’ लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह महात्मा गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे लेकिन Bhagat Singh – करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड

Bhagat Singh : यहां भगत सिंह का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड‘ बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • 13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर (अंग्रेजी ऑफिसर) द्वारा अमृतसर में “स्वर्ण मंदिर” के निकट जलियांवाला बाग हत्याकांड कराया गया जिसमें अनाधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक लोग घायल हुए।
  • जिस समय जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ उस समय भगत सिंह की आयु महज 12 वर्ष की थी।
  • हत्याकांड की सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे।
  • यह हत्याकांड उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला , तब भगत सिंह ने “लाहौर के नेशनल कॉलेज” की पढ़ाई छोड़कर 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लिया। जिसमें गांधी जी सभी विदेशी वस्तुओं का बहीष्कार कर रहे थे।

चौरी चौरा हत्याकांड

Bhagat Singh : यहां भगत सिंह का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके ‘चौरी चौरा हत्याकांड‘ बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • 4 फरवरी 1922, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर चौरी चौरा नामक स्थान पर किसानों और कुछ लोगों की भीड़ ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ एक पुलिस चौकी में आग लगा दी थी जिसमें लगभग 23 पुलिस कर्मचारियों की मौत हो गई थी यह घटना इतिहास मेंचौरी चौरा हत्याकांड के नाम से जानी जाती है।
  • इस घटना के बाद गांधी जी ने “असहयोग आंदोलन” वापस ले लिया और किसानों का साथ नहीं दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए उसके बाद उनका अहिंसा में विश्वास कमजोर हो गया और उन्होंने सशस्त्र क्रांति को ही स्वतंत्रता दिलाने का एकमात्र मार्ग समझा।
  • इस घटना के बाद क्रांतिकारी में दो दल बन गए। जिसमें एक दल नरम दल और दूसरा गरम दल के नाम से जाने जाते थे। Bhagat Singh , सुखदेव राजगुरु, अशफ़ाकउल्ला खान , राजेंद्र लाहिड़ी , रोशन सिंह , राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद आदि क्रांतिकारी गरम दल के नेता थे।

काकोरी काण्ड

Bhagat Singh : यहां भगत सिंह का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके ‘काकोरी काण्ड‘ बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • 9 अगस्त 1925, लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर गरम दल के लोगों ने ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूट लिया था। जिसे उसे समय काकोरी हत्याकांड के नाम से जाना जाता था और अब इसे काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से जाना जाता है।
  • इस घटना को अंजाम देने वाले राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी समेत 10 क्रांतिकारी शामिल थे।
  • काकोरी षड्यंत्र ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक असोसिएसन’ (HRA) बड़ी कार्रवाई थी।
  • जब ब्रिटिश सरकार ने इस घटना की तलाशी ली तो उन्होंने कई लोगों को गिरफ्तार किया। जिसमें 17 लोगों को जेल, चार लोगों को सजा-ए -काला पानी या आजीवन करावाश और चार लोग राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह और अशफ़ाकउल्ला खान को फांसी की सजा सुनाई गई।
  • इस घटना के बाद Bhagat Singh इतने दुखी हो गए थे कि उन्होंने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा को चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान पब्लिक संगठन (HRA) से जोड़ दिया गया था और उसे एक नया नाम दिया जिसे ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) के नाम से जाना गया।

साइमन कमीशन बहिष्कार

Bhagat Singh : यहां Bhagat Singh का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके ‘साइमन कमीशन बहिष्कार‘ बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • 8 नवंबर 1927, भारत में संविधान सुधार के लिए 7 ब्रिटिश सांसद समूह का गठन किया जिसे ‘साइमन कमीशन’ के नाम से जाना गया। इसका नाम इस कमीशन के अध्यक्ष सर ‘जॉन साइमन’ के नाम पर रखा गया।
  • 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत आया जिसे भारत के लोगों ने जमकर विरोध किया और साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगाए।
  • साइमन कमीशन बहिष्कार के लिए लोगों ने भयानक प्रदर्शन किया। इस कमीशन का लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू और मुस्लिम लीग ने भी विरोध प्रदर्शन किया।
  • 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय ने अंग्रेजों वापस जाओ का नारा दिया और इस कमीशन का विरोध किया। उनके इस विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार ने प्रदर्शन कार्यों पर लाठी चार्ज कर दिया। इस लाठी चार्ज का नेतृत्व ‘सांडर्स’ कर रहा था। उसने अपने एक अधिकारी स्कॉट को लाला लाजपत राय पर लाठी बरसाने का आदेश दिया जिस कारण लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए। और इलाज के दौरान 18 दिन बाद 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया।
  • मृत्यु से पूर्व लाला लाजपत राय ने कहा कि ” मेरे ऊपर बरसाई गई हर एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी “।
  • लाला लाजपत राय और Bhagat Singh के बीच आपसी मतभेद थे परंतु उनकी मौत के बाद भगत सिंह के साथ चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव और राजगुरु ने ‘सांडर्स’ को मारने की कसम खाई।
  • 17 दिसंबर सन 1928 को Bhagat Singh और राजगुरु ने सांडर्स को मार कर अपना बदला पूरा किया।

सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना

Bhagat Singh : यहां भगत सिंह का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना और उनकी गिरफ्तारी कर बारे में बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • 8 अप्रैल सन 1929 दिल्ली के सेंट्रल असेंबली में वायसराय ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पेश कर रहे थे। इस बिल में ब्रिटिश सरकार के पास या अधिकार आ जाता कि वह किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाएं हिरासत में ले सकती थी।
  • इस बिल को कानून बनाने के लिए विट्ठल भाई पटेल जैसे ही फैसला सुनाने लगे तभी अचानक असेंबली में जोरदार विस्फोट हुआ, हाल में धुआं भर गया और दो व्यक्ति “इंकलाब जिंदाबाद” “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” और दुनिया की मजदूर एक हो जाओ जैसे नारे लगने लगे। यह दो व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ही थे।
  • उनका मकसद लोगों को मारना या घायल करना नहीं था बल्कि बहरों ( ब्रिटिश सरकार) को सुनना था उन्होंने हाल में पर्चियाँ भी फेके थे। जिन पर लिखा था की बहारों को सुनने के लिए बहुत ऊंची आवाज की जरूरत होती है
  • इसके बाद दोनों को ब्रिटिश अफसर ने पकड़ लिया।

जेल

Bhagat Singh : यहां भगत सिंह का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके जेल मे बीते समय के बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • Bhagat Singh और बटुकेश्वर दत्त को असेंबली में बम फेंकने के आरोप में दोषि हराया गया और दोनों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई।
  • बटुकेश्वर दत्त को अंडमान निकोबार में काला पानी का सजा सुनाया।
  • 14 जून 1929 को भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव राजगुरु और अन्य साथियों को दिल्ली की सेंट्रल जेल में बंदी के रूप में रखा गया।
  • कुछ दिन वहां रखने के बाद उन्हें 17 जून 1929 को मियांवाली जेल में भेज दिया गया। वहां अच्छा भोजन न मिलने के कारण उन्होंने 116 दिनों की भूख हड़ताल की। इसके बाद उन्हें और उनके साथियों को लाहौर जेल में डाल दिया गया।
  • वहां पर उन्होंने अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल जारी रखा।
  • 63 दिनों की भूख हड़ताल के बाद उनके एक साथी ‘जितेंद्र नाथ दास’ 13 दिसंबर 1929 को मृत्यु हो गई इस घटना के बाद भगत सिंह और उनके साथियों ने 5 अक्टूबर 1929 को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी थी।
  • Bhagat Singh करीब 2 साल तक जेल में रहे। यहां पर उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा यहां पर उन्होंने कई लेख भी लिखीं जिनमें एक उनका बड़ा प्रसिद्ध लेख है ” why I am an atheist ” ( मैं नास्तिक क्यों हूं) अंग्रेजी में लिखा।

फाँसी

Bhagat Singh : यहां भगत सिंह का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके फाँसी के बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • 10 जुलाई 1929 सांडर्स की हत्या के मामले की कार्रवाई शुरू की गई।
  • Bhagat Singh को फांसी दिलाने के लिए ब्रिटिश सरकार की तरफ से राय बहादुर सूर्य नारायण थे। जबकि भगत सिंह की वकालत आसिफ अली कर रहे थे।
  • 26 अगस्त 1930, भगत सिंह को सांडर्स की हत्या और बम विस्फोट के आरोप में अपराधी सिद्ध कर दिया गया। अदालत के द्वारा 67 पेजों पर 7 अक्टूबर 1930 भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद लाहौर में धारा 144 लगा दी गई।
  • फांसी की सजा रोकने के लिए कई प्रयास किये। 10 जनवरी, 1931 प्रिवी परिसर में अपील लॉयर की गई लेकिन इसे रद्द कर दिया गया।
  • फिर उसे समय के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष “पंडित मदन मोहन मालवीय” ने 14 फरवरी, 1931 को वायसराय से मानवता के आधार पर सजा माफी के लिए अपील दायर की परंतु इससे भी बात ना बनी।
  • 17 फरवरी 1931 से 5 मार्च 1931 को लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधी और वायसराय ‘लॉर्ड इरविन’ के बीच समझौता हुआ।
  • महात्मा गांधी ने 18 फरवरी 1931 को वायसराय इरविन से Bhagat Singh सुखदेव और राजगुरु की सजा माफ करने हेतु बात की। परंतु भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ हो।
  • ब्रिटिश सरकार के जज जी. सी. हिल्टन ने 24 मार्च 1931 को फांसी की सजा सुनाई। गांधी जी ने फांसी की सजा के एक दिन पहले भी 23 मार्च 1931 को वायसराय इरविन को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की फांसी रोकने के लिए पत्र भी लिखा।
  • परंतु उनकी फांसी की सजा सुनाई जाने के कारण भारत के लोग जिस तरह विरोध प्रदर्शन कर रहे थे उसे ब्रिटिश सरकार डर गई थी इस कारण ब्रिटिश सरकार ने तीनों को 11 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को 7:33 पर (सोमवार शाम) को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी चढ़ने की सजा को मंजूरी दे दी।
  • फांसी पर जाने से पहले भगत सिंह से जब उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह ‘लेनिन’ की जीवनी पढ़ रहे थे तो उन्होंने उसे जीवनी को पूरा करने का समय दिया जाए।
  • जेल के अधिकारियों ने जब यह सूचना दी कि अब उनको फांसी देने का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था – ” ठहरिए! पहले एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल तो ले। ” तीनों ने एक दूसरे को गले लगाया और उसके बाद भगत सिंह ने किताब छत की ओर उछाल कर बोले- “ठीक है अब चलो “
  • फांसी पर जाते समय तीनों भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव बिना किसी डर के मस्ती से गाते हुए जा रहे थे।
 मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला। माय रंग दे बसंती चोला।।
  • इसके बाद लाहौर सेंट्रल जेल ( 23 मार्च 1931) में Bhagat Singh , राजगुरु और सुखदेव को 7:33 पर फांसी का फंदा पहनाया गया। और तीनों ने फंदे को चुम्मा और उसके बाद उनके हाथ पैर बांध दिए गए। जब जल्लाद ‘काला मशीह’ ने उन तीनों से पूछा कि पर फांसी पर सबसे पहले कौन जाएगा तो ‘सुखदेव’ ने जवाब दिया कि पहले मुझे फांसी पर चढ़ाया जाए” उसके बाद तीनों भारत के वीर क्रांतिकारियों को एक के बाद एक फांसी पर लटका दिया गया।
  • उनकी फांसी के बाद जेल में लोगों ने करीब 15 मिनट तक “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाए जिसका अर्थ है की ‘क्रांति की जय हो’।
  • फांसी के बाद आम जनता आंदोलन या विरोध ना करें इसके डर से ब्रिटिश अधिकारियों ने तीनों के मृत शरीर के टुकड़े की और फिर उन्हें जलाने के लिए बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर लेकर जाने लगे तभी गांव के लोगों ने उन्हे जाते हुए देख लिया तो अंग्रेज अधिकारी डर के कारण उनके शवों के टुकड़े को सतलुज नदी में फेंक के भाग गये। गांव वालों ने नदी के किनारे पहुंचकर तीनों के शवों टुकड़ों को एकत्रित किया और उनका विधिवत अंतिम संस्कार किया।

भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार

Bhagat Singh : यहां भगत सिंह का जीवन परिचय के साथ ही कुछ उनके क्रांतिकारी विचारों को भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं।

  • वह मेरे शरीर को कुचल सकते हैं लेकिन वह मेरी आत्मा को कुचलना में सक्षम नहीं होंगे।
  • मैं एक मानो हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है
  • मेरा धर्म सिर्फ देश की सेवा करना है
  • महान साम्राज्य ध्वन्स हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं
  • कानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक वह लोगों की इच्छा के अभिव्यक्त करें
  • बहरों को सुनाने के लिए सुनाने के लिए धमाके की जरूरत
  • जो भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अब विश्वास करना होगा और उसे चुनौती देना होगा।
  • राख का हर कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।
  • प्रेमी, पागल और कभी एक ही चीज से बने होते हैं।
  • मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है वह भी देश कि आजादी। इसके अलावा कोई और लक्ष्य मुझे लुभा नहीं सकता।
  • मरकर भी मेरे दिल से वतन की उल्फत नहीं निकलेगी, मेरी मिट्टी से भी वतन की ही खुशबू आएगी।
  • जिंदगी अपने दम पर की जाती है दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
  • सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।

सम्मान

Bhagat Singh : भारत में प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है।

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समाप्ति

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धन्यवाद

भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार

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सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना

सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना और उनकी गिरफ्तारी कर बारे में बारे में भी बताया जा रहा है जिन्हें आप नीचे बिंदुओं में देख सकते हैं.
8 अप्रैल सन 1929 दिल्ली के सेंट्रल असेंबली में वायसराय ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पेश कर रहे थे। इस बिल में ब्रिटिश सरकार के पास या अधिकार आ जाता कि वह किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाएं हिरासत में ले सकती थी।
इस बिल को कानून बनाने के लिए विट्ठल भाई पटेल जैसे ही फैसला सुनाने लगे तभी अचानक असेंबली में जोरदार विस्फोट हुआ, हाल में धुआं भर गया और दो व्यक्ति “इंकलाब जिंदाबाद” “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” और दुनिया की मजदूर एक हो जाओ जैसे नारे लगने लगे। यह दो व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ही थे।
उनका मकसद लोगों को मारना या घायल करना नहीं था बल्कि बहरों ( ब्रिटिश सरकार) को सुनना था उन्होंने हाल में पर्चियाँ भी फेके थे। जिन पर लिखा था की बहारों को सुनने के लिए बहुत ऊंची आवाज की जरूरत होती है
इसके बाद दोनों को ब्रिटिश अफसर ने पकड़ लिया।

साइमन कमीशन बहिष्कार

8 नवंबर 1927, भारत में संविधान सुधार के लिए 7 ब्रिटिश सांसद समूह का गठन किया जिसे ‘साइमन कमीशन’ के नाम से जाना गया। इसका नाम इस कमीशन के अध्यक्ष सर ‘जॉन साइमन’ के नाम पर रखा गया।
3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत आया जिसे भारत के लोगों ने जमकर विरोध किया और साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगाए।
साइमन कमीशन बहिष्कार के लिए लोगों ने भयानक प्रदर्शन किया। इस कमीशन का लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू और मुस्लिम लीग ने भी विरोध प्रदर्शन किया।

काकोरी काण्ड

9 अगस्त 1925, लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर गरम दल के लोगों ने ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूट लिया था। जिसे उसे समय काकोरी हत्याकांड के नाम से जाना जाता था और अब इसे काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से जाना जाता है।
इस घटना को अंजाम देने वाले राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी समेत 10 क्रांतिकारी शामिल थे।

चौरी चौरा हत्याकांड

4 फरवरी 1922, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर चौरी चौरा नामक स्थान पर किसानों और कुछ लोगों की भीड़ ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ एक पुलिस चौकी में आग लगा दी थी जिसमें लगभग 23 पुलिस कर्मचारियों की मौत हो गई थी यह घटना इतिहास मेंचौरी चौरा हत्याकांड के नाम से जानी जाती है।
इस घटना के बाद गांधी जी ने “असहयोग आंदोलन” वापस ले लिया और किसानों का साथ नहीं दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए उसके बाद उनका अहिंसा में विश्वास कमजोर हो गया और उन्होंने सशस्त्र क्रांति को ही स्वतंत्रता दिलाने का एकमात्र मार्ग समझा।
इस घटना के बाद क्रांतिकारी में दो दल बन गए। जिसमें एक दल नरम दल और दूसरा गरम दल के नाम से जाने जाते थे। Bhagat Singh , सुखदेव राजगुरु, अशफ़ाकउल्ला खान , राजेंद्र लाहिड़ी , रोशन सिंह , राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद आदि क्रांतिकारी गरम दल के नेता थे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड

13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर (अंग्रेजी ऑफिसर) द्वारा अमृतसर में “स्वर्ण मंदिर” के निकट जलियांवाला बाग हत्याकांड कराया गया जिसमें अनाधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक लोग घायल हुए।
जिस समय जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ उस समय भगत सिंह की आयु महज 12 वर्ष की थी।
हत्याकांड की सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे।
यह हत्याकांड उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला , तब भगत सिंह ने “लाहौर के नेशनल कॉलेज” की पढ़ाई छोड़कर 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लिया। जिसमें गांधी जी सभी विदेशी वस्तुओं का बहीष्कार कर रहे थे।

भगत सिंह की आरंभिक शिक्षा

Bhagat Singh : भगत सिंह ने अपनी पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में की और उसके बाद उनके पिता “किशन सिंह” ने उन्हें ‘दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल’ लाहौर में उनका दाखिला करवाया। बहुत ही छोटी उम्र में भगत सिंह महात्मा गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे लेकिन Bhagat Singh – करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे।

Rajan Pandey: प्रिय पाठक मेरा नाम राजन पाण्डेय है। मैँ पिछले कुछ वर्षों से एक लेखक के रूप मे कार्य कर रहा हूँ। और मैँ Education से Related Post को आपके साथ Share करता हूँ।

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